फिल्म की कहानी जो दिल छू जाती है, दिल में उतर जाती है।
"सितारे ज़मीन पर" एक ऐसी कहानी है, जो शुरू तो एक आम खेल ड्रामा की तरह होती है, लेकिन धीरे-धीरे दिल में उतरती चली जाती है। फिल्म की कहानी एक ऐसे कोच की है, जो ज़िंदगी में खुद से भाग रहा होता है। उसे अचानक एक ऐसी बास्केटबॉल टीम की कोचिंग का जिम्मा मिल जाता है, जिसमें खिलाड़ी अलग-अलग मानसिक और शारीरिक चुनौतियों से जूझ रहे होते हैं। लेकिन जैसे-जैसे वो कोच इन बच्चों के साथ वक्त बिताता है, उसकी सोच बदलने लगती है। यही से फिल्म भावनाओं की उस गहराई में उतरती है जहाँ हर दर्शक खुद को इन बच्चों और इस कोच से जोड़ लेता है।आमिर खान की अदाकारी – सादगी में छुपा असर
फिल्म के असली सितारे वे विशेष बच्चे हैं, जिन्होंने इस फिल्म को जी कर दिखाया है। न कोई ओवरएक्टिंग, न कोई घिसे-पिटे संवाद—बस आंखों से बयां होती सच्ची कहानियाँ। ये बच्चे सिर्फ पर्दे पर हीरो नहीं बने, बल्कि उन्होंने हमें यह दिखा दिया कि काबिलियत शरीर में नहीं, आत्मा में होती है। उनकी मासूम हंसी, झिझकते कदम, और आत्मविश्वास से भरे पलों ने हर दर्शक की आंखों में नमी ला दी।संगीत और तकनीक – भावना का सहारा
फिल्म में संगीत का इस्तेमाल बेहद संवेदनशीलता से किया गया है। शंकर-एहसान-लॉय की संगीतकार तिकड़ी ने इस कहानी को और भी भावनात्मक बना दिया है। एक सीन में जब पूरी टीम हार के बाद भी मुस्कुरा रही होती है और बैकग्राउंड में धीमी धुन चलती है—वो लम्हा सिर्फ सिनेमा नहीं, जिंदगी की सच्चाई बन जाता है। सिनेमैटोग्राफी भी साफ-सुथरी और भावनाओं से मेल खाती है, जो कहानी को और असरदार बनाती है।पब्लिक की प्रतिक्रिया – दिल से निकली बातें
सिनेमा हॉल से निकलते हुए लोगों की आंखें नम थीं लेकिन चेहरों पर सुकून था। सोशल मीडिया पर लोग इसे आमिर खान की 'दिल से की गई फिल्म' बता रहे हैं। किसी ने लिखा, "इस फिल्म ने मुझे अंदर से झकझोर दिया", तो किसी ने कहा, "ये फिल्म हर स्कूल में दिखाई जानी चाहिए"। ट्रेलर के समय जिस तरह सोशल मीडिया पर बायकॉट की बातें चल रही थीं, रिलीज़ के बाद वही दर्शक इस फिल्म को "Aamir की सबसे सच्ची वापसी" कहने लगे।फिल्म का संदेश – बराबरी, सम्मान और उम्मीद
"सितारे ज़मीन पर" केवल एक कहानी नहीं, बल्कि एक सामाजिक संदेश है। यह फिल्म हमें सिखाती है कि खास बच्चों को सहानुभूति नहीं, बराबरी का दर्जा चाहिए। उन्हें भी वही मौके, वही सपने और वही सम्मान मिलना चाहिए जो बाकी सभी को मिलता है। यह फिल्म उस सोच को तोड़ती है, जो उन्हें सिर्फ "दया के पात्र" समझती है, और उन्हें वही इंसानियत का हिस्सा बनाती है जिसमें हम सब शामिल हैं।फिल्म का रिव्यू और देखना चाहिए
फिल्म की कहानी एक ऐसे बास्केटबॉल कोच की है जिसे एक ऐसी टीम को ट्रेन करने की जिम्मेदारी दी जाती है जिसमें खास ज़रूरतों वाले बच्चे हैं। शुरुआत में कोच खुद इस ज़िम्मेदारी को हल्के में लेता है, लेकिन धीरे-धीरे वो बच्चों की मासूमियत, संघर्ष और जज़्बे को देखकर खुद भी बदलने लगता है। फिल्म यह बेहद खूबसूरती से दिखाती है कि हमें इन बच्चों को दया नहीं, बराबरी और सम्मान की नजर से देखना चाहिए।